आज ही के दिन यानी 18 जनवरी को प्रसिद्ध हिंदी कवि-लेखक हरिवंश राय बच्चन इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। जब हरिवंश राय बच्चन कविता पाठ करते थे तो लोग अपनी सुध-बुध खोकर उनकी कविताओं में डूब जाते थे। उनकी कविताओं में सादगी और संवेदनशीलता के मिश्रण ने उन्हें हमेशा के लिए अमर बना दिया। तो आइए जानते हैं हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि के मौके पर उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य...
यहां 'पद्म भूषण' पुरस्कार विजेता की कुछ प्रसिद्ध कविताएं हैं-
1. मधुशाला
मदिरालय जाने को घर से
चलता है पीने वाला
किस रास्ते से जाऊं?
असमंजस में है कौन भोला-भाला
अलग-अलग पथ बतलाते सब,
पर मैं ये बतलाता हूं-
राह पकड़ तू एक चला चल,
पा जाएगा मधुशाला
2. अग्निपथ
तू ना थकेगा कभी,
तू ना थमेगा कभी,
तू ना मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
रुके ना तू
धनुष उठा, प्रहार कर
तू सबसे पहला वार कर
अग्नि सी धधक-धधक
हिरण सी सजग-सजग
सिंह सी दहाड़ कर
शंख सी पुकार कर
रूके ना तू, थके ना तू
झुके ना तू, थमे ना तू
3. विश्व सारा सो रहा है
हैं विचारते स्वान सुंदर,
किंतु इनका संग तजकर,
व्योमव्यापि शून्यता का
कौन साथी हो रहा है?
विश्व सारा सो रहा है
4. जो बीत गई सो बात गई है
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
हरिवंश राय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. पूरा किया। 1941 से 1952 तक वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में व्याख्याता रहे। फिर वह आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य पर शोध किया।
यह घटना करीब 7 दशक पुरानी है, जब हरिवंश राय मंच पर कविता पाठ करते थे तो लोग लोटपोट हो जाते थे। 1954 में हरिवंश राय बच्चन ने प्रयागराज में आयोजित कवि सम्मेलन में बिना पारिश्रमिक के कविता पाठ करने से इनकार कर दिया था। फिर करीब एक घंटे के अनुनय-विनय के बाद आयोजकों को कवि के सामने झुकना पड़ा। तभी हरिवंश राय बच्चन कविता पढ़ने के लिए तैयार हुए। इस दौरान उन्होंने कविता पाठ से 101 रुपये कमाए। यह पारिश्रमिक स्वयं हरिवंश बच्चन को मिला तथा अन्य कवियों को भी मिला। इसके बाद से कविता पाठ के लिए पारिश्रमिक देने की परंपरा शुरू हुई। जो आज भी जारी है।
आपको बता दें कि हरिवंश राय बच्चन ने कुल 26 कविता संग्रह लिखे हैं। अंग्रेजी पढ़ाने के अलावा उन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के लिए हिंदी अनुवादक के रूप में भी काम किया। हरिवंश राय को साहित्य में उनके योगदान के लिए राज्य सभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था। 1976 में भारत सरकार ने हरिवंश बच्चन को पद्म भूषण से सम्मानित किया। इसके अलावा हरिवंश राय बच्चन को 1968 में '2 चट्टानन' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला।
मधुशाला को पढ़ने वालों ने सोचा कि इसका रचयिता शराब का शौकीन रहा होगा। लेकिन हरिवंश राय बच्चन ने अपने पूरे जीवन में कभी शराब को हाथ नहीं लगाया। लेकिन हरिवंश बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव को लगता था कि इस कविता का देश के युवाओं पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। युवा लोग शराब की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस वजह से हरिवंश राय बच्चन के पिता उनसे बहुत नाराज हो गए। उस समय मधुशाला का कई स्थानों पर विरोध हुआ। लेकिन यही कविता हरिवंश बच्चन की सबसे बड़ी पहचान बन गई।